पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१८८

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गहन, अलख उद्गम वाली यह घहर रही है जीवन-सरिता, राग रग आवर्तवती है इसको प्रवाह-गति त्वरिता, मानव-हिय के प्रश्न अनेको इसके सकर बने बलशाली, जीवन की दृढता बन आयो इस तटिनी की वहन-प्रणालो, इसमें काम क्रोध के बतुल, गहरे-गहरे भंवर जुटिल है, कोटि-कोटि उच्छवास-फेन से में दिक्-काल कूल फेमिल है। इसका धोर प्रवाह घोप यह हास्य भरित, आक्रोम भरित है। अभुत विरुद्ध भावनाओ का अभिव्यजन इसमें मुखरित है ।। राशय-कदम-पकिल द्वन्द्वो की खठ रही तरगे, मीन-सदृश कर उटी केलिये रंग-बिरगी हृदय - उमगे, असफल आकाक्षा की बूँदें फूलो से टकराकर छहरी, किन्तु जा रही है बहती ही यह जीयन की मगा-लहरी । हम विपपायो जनम क १६३