पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कोन सिन्धु है जिसे भेंटने आतुर होकर यह धायी है। अथवा, केवल यो ही क्या, यह पन्थ भूल, जग में आवी है? क्या आबद्ध हो गयी है यह इन दिल्-काल-तटो से यो हो। अहो, वही है यह सरिता क्या यो ही निरुद्देश्य ज्यो-त्यो हो? सोख जायगा गया इसको यह देश-काल का विकट मरुस्थल क्या इसके प्रवाह की गाथा होगी यो ही स्मृति दृग-ओशल 7 ? नया स्वभाव है इस सरिता का २ क्या है यह चिर ऊध्वगामिनी ? अथवा इस अपगा की गति है क्या रान्तत ही अधोगामिनी? किंवा, अधश्चोध्य स्पन्दन का क्या यह केवल भ्रम ही भ्रम है। यो प्रश्नों की झडी लगाना यया विन फाज,व्यथा,प्रम है? पर, मानव, जीवन प्रयाह लख, बैठ रहे विन बोले? बुद्धि-तुला दी है चेतन ने, तो वह क्यो न स्वयं को तोले, १६४ हम विषपाया जनगक