पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१९१

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आदि अलख है, अन्त अलख है, किन्तु मध्य भी क्या सुविदित है? जो है दृग्गोचर जीवन-क्रम, वह भी तो अतिशय अपिहित है किन्तु झलक जब-तव जो मिलती उससे तो इतना निश्चित है कि है अबाध गमन-मय जीवन यदपि शृखला से विजडित है। हो सकती है दुग्ध - फेन - सी, जीवन की मटमैली चादर, उसे धूसरित देख करे क्यो कोई उसका निपट निरादर' प्राणो मे भर अमिता दृडता मनुज आज हुकार रहा है, मानो निज विस्मृत स्वरूप वह स्मृति में पुन उतार रहा है, इस प्रवाह - आकर्षण मे पड, मानो भूला था अपने का, आतुर है वह कि अब मेट दे इस परवशता के सपने को। सहसा बाज घनक उट्टे है नवल जागरण घण्ट बनन-पन । देसी, पुरलने वाले ही हैं मानव के लोचन- वातायन । हम विषपायी जनमक