पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१९२

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. जो अब तक बहता जाता था अति परवश-सा, अथवा शव सा, निपट अकर्ण पोत-सा, तृण सा, अपवा तिमि-सा, योगराधव-सा, वही प्रवाही जन्तु आज तो उभर रहा है बन विद्रोही, जो वाहित था, वही हो रहा, आज, ओघ - लहरी - आरोही। इस जीवन-प्रवाह को मृति भी ग्रहण करेगो दिशा ईप्सिवा मानव को न बहा पायेगी इधर-उधर जीवन की सरिता। यह जीवन की सरिता यद्यपि लगती है निम्नगा निरन्तर, किन्तु कबंगामिनी करेगा इसको मानव का अभ्यन्तर, घार बहेगो अम ऊपर को, अघो• बहन - आभास मिटेगा, उग्रीवी होगा जीवन - भाम विवश गमन का माम मिटेगा, अब हुकार उठेगा, मैं जगपति हूँ। मैं हूँ म्यामी । मनोविकारो का न दाम में, में निज मत् स्वभाव अनुगानी । पेन्द्रीय कारागार, बरेली १२ एरवरी १९४ मानव हम पिपपापी नमक 110