पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१९४

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पीछे मुडकर मैने जन - याना-पथ पर अपने पस, उस पर अकित मुझे मिले है हिंसक पशुओ के पजे, नम 1 में निकला था हुलस ढूंढने मानव - चरण -चिह्न अकित मग, किन्तु मुझे गानव से खाली लगा अतीत युगो का भी जग । आज अपने को, लले पाश्यवर्ती अपने जन, मैने अपने मे, अन्यो में लम्बे रक्त के प्यासे पशु गण, मैने लसा 1 मैने देखा निज अन्तर से पजे फैलाये इक नाहर और निहारे मेडिये गुराते अपने से बाहर मैं हूँ कौग? कौन है ये सब ? सोच रहा हूँ मैं यो पल पल, है किनका रागाज शोणित रत? किन - किन का यह कोलाहल? क्या मैं गानव हूँ? या मै हूँ केवल कुछ उफान की सत-सन ? भया मानव मानव है। या वे घनीभूत उतेजन? १६६ हम विपपाथी जनमक २२