पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२०७

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1 इस झुटपुटे समय मे देखो, मन गहरे में ड्व रहा, अन्यमनस्क - भावना आयी, हिय उलझा-सा का रहा- सिंचे जा रहे हो जोरो से, तुम पीछे को बरबस - से। सन्ध्या को श्यामल घडियो में यह मजाक भी खूब रहा क्यो है यह इतना नाकर्षण, उन सचित सस्मरणो मे ? क्यो है मादकता संस्कृति के झकृत चरणाभरणो में। मद है, मोहकता है, रस है और जबदस्ती भी है, पूरी तानाशाही ही है स्मरण - राज्य - उपकरणो मे। कौन वताये तुम्हे कि क्यो है मादकता की धडियो मे? तनिक कहो मादयाता क्यो है फरुण गीत की कडियो मे । अपनो की सुध करके वयो यो प्राण टूटने लगते हैं? उनको याद हो यो आती पावस ऋतु को इटियो मे ? स्मृति - आकषण - तत्त्व - निदशन क्या जाने नवीन ज्ञानी? वे तो यस ऐसे क्षण, भर-भर लाते हैं दृग् में पानी, इतना वे अवश्य कहते हैं, जीवन है स्मृति - पुज निग, स्मृति मे निज साक्षात्कार हो अनुभव करते है प्राणी । मात्म - रप - दशन मै सुख है, मृदु आकर्षण लीला है, और विगत जीवन सस्मृति भी स्वात्म - प्रदशन - शीला है, दपण में निज विम्य देखकर यदि हम सब खिंच जाते हैं, तो फिर सस्मृति तो स्वभावत नर-हिमपण शोला है । यह आयो, देखो आयी है वह तन्वी सस्मृति रानी - गत जीवन - घटनाओं में मदु नूपुर पहने कापाणी, वन-शृगाल, मत शोर मना, तू सुनने दे सबार अरें, गेहू प्रयासो, गेह निनाशी उत्सुक है चीन ज्ञानी, हम विषपादा नमक 15