पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२०८

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ठहर, अरी ओ वर्तमान को नव-सरदेश-पवन दूती,- यो दहाडती सी मत बह तू, कर ने शोर हा हा-हूति, सस्मृति के नूपुर फी झन-खन अन्तरिक्ष मे गूंज रही तू सन सन करती न डील री, दोनो श्रवणो को छूती एक-एक घटना जीवन फी, याद आ रही रह रह के इन्ही ग्राम गलियो मे, मोजी, तुम कितने भटके, बहके । नव विकास की प्रथम वेदना यही हुई अनुभूत तुम्हे, यही तुम्हारे भाव-विहगम पहले-पहल जरा चहके यह नगे पैरो नित रहना, वह नि साधनता सारी, अपर्याप्त वे वस्त्र तुम्हारे वह दारिद्रय कष्टकारी, ये तो बचपन के साथी है, अब तक साथ निभाते है, अति दारिद्रय-देन्य-पीडा के तुम हो मूल-मुकुट-घारी। तुम गुदडी के लाल नहीं, पर हो गुबडो के बाल सते, उरा दरिद्रतामे दुख पाके तुम हो गये निहाल ससे, दुख पाया, अरमान मर मिटे, बहुत सहा, भोगा इतना । पर इस सकरुण हिय को पाकर तुम हो माला माल राख्ने । आये नूपुर के स्वर मन-मान आये नूपुर के स्वन झन झन, खिंच गये प्राण भर गये थयण, आमे नूपुर के स्कन झन झन । हम विपपामी जनम के १E