पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२०९

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हो उठा तरमित सुस-समोर, पापा अम्बर मा वक्ष धौर, आयी श्रवणी में उत्कण्ठा जग गयी जगत् की विसुध पीर जर ध्वनि आयो रुनझुनन-आनन, जब गूंजा मादक नूपुर र 1 भग गया दिशाओ मे सपना । जग भूला यह भाव अपना । मृण्मय भी बना परम तन्मय । हाकृति-गुजार - वितान सना स्वर भर लहराया मलय पवन | आये नूपुर के स्वन झन इ कोह को तान पुरानी मग, अब तक थी अनुत्तरित विभ्रम, पर अब नूपुर-गुजारो मे। मिल गया समुद सोऽह का सम । हमने पाया कुछ आश्वासन, आये नूपुर के स्थन झन में हिय का यह हा-हा कार निरा,- जिससे यह जीवन आज घिरा- क्याअब न शान्त, उपरमित बने? मन अब क्यो डोरे फिरा-फिरा? जब कान पड़ी यह ध्वनि मूलन, आये नूपुर के स्वन झन-म सब पूछे है सन-शन मया है जग पूछे है यह रवन क्या है। हम शब्द-मूह क्या बतलायें ? प्रिय का यह चपल गमन क्या है? हो सकता है यह अहहपन, आये नूपुर के स्वन सन डा. 7 152 दम विषपायी जद