पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२१०

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ज्ञान शन-श्रवणागत अनिल-लहर, झन-सन-यह अनहद-नाद गहर, झन झन-ये ध्वनि-सुरधुनी भैयर, झन झन झन-अमर प्रणय अदार, भन्न शग अन गूंजा हिय आँगन, आये नूपुर के स्वन अग-झन । ध्वनि धागएँ रिम-झिम बरसी, दश दिशि गुजारमयी सरसी, धनि सुनी, किन्तु शांकी न गिली प्यामी दृग पानिकाए तरसी, वे अलख, मलल उनके सुचरण, आये नूपुर के स्वन झन झन । दामे-वायें आगे - पोछे,- बाहर - भोतर, ऊपर-नीचे, - सब ओर सुनी गुजार यही, ध्वनि ने जल-थल अम्बर सीने, अनमने प्राण, गर नाद-मगन, आये नूपुर के स्वन झन अन । आये अग फो करते जग ये अपगा को देते गति-पग ये, चचलता का परला पकडे,-- आमे धीमे धरते उग वे, हुलसा सिरजन, गूंजा कण-कण, आये नूपुर के स्वन झन अन । सयर, घरती नाची, नाना अम्बर, तारक-माला नानी ता-थइ, ता-थइ कर नाच उटे, अनगिनत सौर-मण्डल घर-यर, उनने जब किया चरण नतन, आये नूपुर को स्वन झन झन ! 153 दम निपपायी जनम के २४