पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२११

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कुछ धुआ और कुछ द्रव्य-तरल, उसमे भर गति का चाल-रल,- रच डाला यह सिरजन-अपच, गो वे बनते है बहुत सरल । गंजा नितान्त निस्तब्ध - गगन, आये नूपुर के स्वर झन - अन 1 था मौन किसी क्षण यह प्रपच, आभास नादया था म रच, पर किसने मुखरित कर डाला- निस्तब्ध सृष्टि का रंग - मच । है अनु गजित पिंकिणि गिजन, ये हैं नूपुर के स्वन झन - शन। उल्लास भरे, उत्याद भरे,- मद मरे और अवसाद भरे,- हम आज पूछते हैं उनसे,- कोई किस सरह विवाद करे, जब नूपुर वो झगन झनन, ही उठे प्राण मन, जब उन्मन' गा जाने देखा रटोल हमने अन्तर, सोगा हमने बाहर - भीतर, यूँ ही रटोलते बीते हैं, कितने मवन्तर, पर मिटी न गन को यह तडपन, हम खोज रहे है नूपुर-स्वन । युग-युग पहले,जिस दिन जिसक्षण, पाये हमने सुकुमार - श्रयण, उस दिन, उस क्षण हो से हम तो, गुनते आये हैं, यह गुजन, पर मिले न पिय पे पदाभण, यद्यपि गुनते हैं स्थन झन झन 3 १८६ दम रिपपाथी जनमक