पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२१२

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परदा ही है मजूर अगर, करना ही है दिल-तूर अगर, तो छिपे रहो नूपुर बासे, भटकाओ हमको उगर-डगर । तुम लुक-छिप बैठ रहो वन-ठन, ठुनकाओ नूपुर स्वर झन-सन। अपनी हस्ती ही आज बनी, परदे की यह दीवार धनी, पर, इस हस्ती ही से हमने, पायो यह श्रवण शक्ति इतनी, हो हम गुमारक अपनापन, जो श्रवण कर सके नूपुर स्वन । तुम 'और' और हम 'और' रहे, तुम उस दिशि, हम इस ओर रहे, तुम छुप छुमकाओ नूपुर, हम, लोतानी में सिर-मौर रहै। ध्वनि ही कर लेगे आलिगन, तुम आने दो नूपुर के स्वन । कैसे होंगे वे आभूषण कैसे होगे वे पदाभरण ? हम आज सोचते हैं गन मे, कैसे होगे वे हृदय हरण जिनसे ध्वनि-भरित-गगन प्रागण, जिनको ध्यान आती है खन खन। निशिपतिको रजताया लेकर, उसमे घन द्रव्य-भाव भर-भर, कौशल ने स्थय गहे हैं थे, ब्रह्माण्डाकृति भूपुर हिम - हर, जो देते हैं जग को जोवन, हे ध्वनि जिनकी अय-बाय-हरण । हम पिपस्यो जनमक १८०