पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२१३

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उन आभरणो मे गुंथी पडी, दिन मणि किरणो को रजत-लडी, जो चरणागुलियो में उलझी- झिलगिल होती है घडी - पड़ी। ज्यो ही कुछ डोले चार चरण, आयो नूपुर की ध्वनि झन-झन । सातो स्वर, मुक्ता-कण यन धन, भर गये नूपुरो मे तत्क्षण, नूपुर, नूपुर तो रहे, किन्तु, वे हुए परम सगीत - मदन, हो चला सप्त-स्वर का मन्थन, जब आये नूपुर स्वर झन यन । रवि - शशि की चादी के नूपुर- दिशि-दियिा गुजित है मधुर मधुर, मुखरित ससृति को गलो - गली, गुजरित हमारा अन्त पुर, हम रातत मगन, सुन नाद गहन आये नूपुर के ग्वन झन सन 1 ध्वनि सुनी कान, स्मृति माग उठी, मानो चिराग को त्याग उठी, जैगे कुछ सहा याद पड़ा, स्मृति ले नय-नव अनुराग उठी। टूटे मानो माया बन्धन, जब आमे नूपुर स्वन झन - दान 1 सदियो की यात्रा गिनती यापे मन्य तर खडे जहा का। ध्वनि सुन,जन स्मृति जागेअतोत, तव गतसंवत्सर क्या नाणे? होते युगान्त के सुमवरण, जर आते है नूपुर के स्वन । हम विपपायी नमक 155