पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सत्य लोक में सदा प्रतिष्ठित है इरा मानव का सिंहासन, पर, अब यो लगता है मानो रिस्त पड़ा है वह उच्चासत, गानो अपने हो से उसने किया वहाँ रो निज निष्कासन, अपने ही से, मानो, स्वागा इसने अपना यह सत् शासन । अब निरखो इस पतित, अधोमुख मानव को यो नीचे जाते देखो तो इस स्ववश विषा को बरबस नौने खीचे जाते। आज सप्त पातालो का भर कर्पण इरानो सोच रहा है, नीचे गिरता हुआ मनुज यह खोल-गोल दृग मीच रहा है, सत्यलोक से हुमा भ्रष्ट यहा सन-सन करता नोचे आया, तप, जन ओ' मह , स्व, भुव से गिरकर भू पर टकराया । अतल, वितल, गो' सुतल, रसातल, गहन तलातल, गहर गहातल औ' पाताल लोक लौ गिरता जा पहुंचा यह मानन विह्वल । हम विषपायो शानम के १९५