पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२२१

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पर, जहाँ सभी सेवक थे चन्द्र, सूर्य, तारागण, इसके- पूछ रहे है, कि ये महाशय ऊपर से नीचे क्यो खिसके? बोल, मनुज, तू ही दे उत्तर, क्यो आयी वह घडी पतन की? अरे, समस्या यह तू सुलझा, खोल गाठ तू अपने मन की। ऊपर से नीचे क्यो आया कितना और गिरेगा नीचे? चौदह भुवनो के कण - वाण मे तूने क्यो निज थम-कण सोचे' 7 इस नभ - गगा के भी कमर, उन तारक वृन्दो के ऊपर, देश काल के परे, अरे, या वह सत् चित्-सुन्दर तेरा घर ।। जब तू गिरा यहाँ से नीचे करता सन-सन-सन सन-सन रान, तब अचरज से लगे निरसने तुझयो ये असरय तारागण । अरे, कभी था तय चरणो में नीरे यह दिव-काल-मण्डल ।। यह ब्रह्माण्ड विमग महत्तम, यह अवत-सा मवल खमण्डल॥ दस रिपपायी जनमक १९५