पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२२७

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गिरकर, गिरा वहां से भी वह मानव, भुवलॉक मे आ टकराया. वहाँ सूर्य के विविध ग्रहो मे विनर-विचर वह अति अबुलाया, मगल, बुध, शनि सब मे भटका, चन्द्रलोक मे आया किन्तु न मिली एक क्षण को भी उनको मम-प्रसनता तिल भर, मिरकर तब, भूलोवा-भवन मे आ अटका यह मानव प्राणी, तब उसको यो लगा कि गानो, उसे मिली शुभ गति कल्याणी । लेकिन इस धरती पर भी तो हुए अमित अविचार मनुज के, होते रहे कुकर्म यहाँ पर युग-युगली इस द्विपद, द्वि-भुज के, घरा धसकाकार आज चली है बरबस-सी पाताल अतल में, सत्पलोवा से भ्रष्ट मनुज ही पैसा रहा है भूगल पल में, अतल,वितल औ' सुतल, रसातल, गहन तलातल, गहर महातल, ओ' पाताल, सभी का मिरजन यहाँ कर रहा है यह पागल 1 २०२ हम विषपायी जनम के