पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२२९

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1 भाई- गो लगता है मानो अपनी यह यसुधा हो गयो इक दूजे वो भूल गये है मानी दोनो इस धरती के दोनो बेटे अपनी घरती- ये अब भूले हैं कि इन्होंने सँग संग इसको मिट्टी खाय शितना दूध मिला है इनको इस वृद्धा हिम गिरि-लाता से. कितना प्यार, दुलार, मिला है इनको इस धरती माता से।" अष हुआ आज सद्भाय तिरोहित, मुखरित भेद-भावना जागी, पतित होकर के सहसा मानव ने मानवता त्यागो, बया ने आज आशाएँ मेरी जलकर क्षार क्षार हो जाये। क्यो न आज भावो के सपने मेरे हृदय भार हो आयें? मेरे हिय में भाज निराशा, नागिन वन फुगर रही है । मम गति पथ म अगति सिंहनो मँडराती हकार रही है !! २०४ देम Firma