पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२३०

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दशो दिशाएँ घन तम मय है, अंधियारा है सम अम्बर म- बुझे-बुझे लगते हैं दीपक, अन्धकार है जन-अन्तर मे, बाज अंधेरे ने बढ़-चढ़ कर मुक्ति माग आक्रान्त किया है, उठ-छ शत शत सन्देहो ने जन-गण-मन उद्घान्त किया है, आज स्वतन भावना जन की रुद्ध हुई, हृत वृद्धि हुई है, निरलस वार्म-प्रेरणा मानो सहमा आज अशुद्ध हुई है। विन्तु मिला है शुद्ध ज्ञान का जो वरदान मनुज जीवन मे, उसका है आदेश । न आये आदाका यात्री के मन मे, मानव पतित हुआ है यदि तो, निज वैभव प्रकटाने को ही, आज खो गया है मागच यदि, तो वह निज को पाने को ही ॥ इस उद्भात मनुज में अव भी सत्य-धारणा को क्षमता है, तम मे है यह, किन्तु हृदय मे इसके चिर प्रकाश गमता है। हम विपपायी जनग क २०१