पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२३१

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तुम मत बुझने दो निज दीपक, यह दुदम तम - तोम हटेगा, मत निराश हो, ओ जन मेरे, यह भावृत घन पुज फटेगा। मत होने दो निज पग ग-मग यदपि थकित होनस-नस, रंग रंग, सन्तत गतिमय है जव सब जग, तब तुम क्यो छोडो अपना मग । कम्पित कर से दीप संभालो, मत निरखो निज पग के छाले । हारी की अस्थियां लेकर, बढते जाओ, केन्द्रीय कारागार, बरेली १९ भार १९४४ मओ धुनवाले 111 अर्द्धनारी नट नर-तन धरवे भी पाया है तुमने नारो हृदय, सल्ले । पयो इतने सफरण, कोमल हो, क्यो हो इतने रादय, सखे ? इस चौखो यलिष्ठ छाती में छुपा रखा है ऐसा हिय । अरे, तनिक तो पत्थर होते, होते तुम कुछ अदय, सखे । इसी तुम्हारी झलक ललकतो वत्सलता दीवानी ने,- इसी इतर-दुप-यातरता गै, इस विहित नादानी ने हाट-बाट मे, गली गली म, सुम्ह खून बदनाम किया, यया ही अब तुम्हे रामशाहै इस जग जा विज्ञानी ने । २०६ दम विषपायी जनमक 05