पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२५०

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नैया आके तो देखो तनिक कैसा हाल-बिहाल ? डगमग - डगमग हो रही इस नौका को चाल । बन्धहीन, गुण गलित, है सही लकडिया चार, क्या जाने क्या हो गये सुदृढ डाड, पतवार । उमड रहो सोतस्विनी बडो प्रवर है धार, रख सहारा दो, निठुर ओ मेरे सरकार । टेर गूंजती गगन में मेरी बारम्बार, निरयल के वल, कान दो, हंसता है ससार । तुम तट पर अठखेलियां खून कर रहे, नाथ, यही जा रही है इधर मेरी नाच मनाथ । जोवन सन्ध्या हो रही चली आ रही रात, कौन पूछने को रहा इस नौका की बात? अपना जिसको समझते रहे मरीव 'नवीन', वही विराना हो गया, किसका पर यकीन । दोन-हीन की जान के जीण-शीर्ण-सी नाव, करते हैं उपहारा सव, जग का यही सुभाव । रसरी बांधो नेह की, नैन-सैन के ठोर, टूटी तरणी खोच लो श्री चरणो को मोर, जब गरजें घनघोर पन, तडपे विज्जु भयोर, तब बोलो, कैसे चले इस नया का जोर। हम विषपायी सनम १२५