पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२५६

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1 तुम बोले निर्लज्ज हम, हमे जलौकिक लाज, पै हमने यह कब कही कि हम लौक सिरताज ? खोशहु मत, रचक सुनहु, ओ मलज्ज सरकार, हमरे दृग मे लखि तुम्हे विहसि रह्यो संसार नैनन में, मन - प्राण मे, रोम-रोम में आज,- चौटे ही तुम रमि रहे, कितें तिहारी लाज' जो तुम लज्जा-शील सौ, यो न हिये ते जाहु ? प्रोति न छानी रहि सकत, सजन, अब न शरमाहु । जब हम मांगत अधर-रस, तबही तुम मुसकात, फिर, नाही करि देत हो, कहहु कौन यह बात डिस्ट्रिक्ट गैल, ननाव ५ मार्च १९४३ हसिनि उडी अकास देखत ही देखत मुंदे वे अनियारे नैन, मौन भये छिन एक मे सलज, रमीले बैन । मानस सरवर अडियो हसिनि उडी अकास, दृग मोतिन के चुगन वाँ बर नहिं आवत पास | औरफ जनि उडि जाहुरी, जनम-जनम की मौत। पाहन सम जग जाइगो तुम बिन हिय नयनीत ।। दम चिपपायी जनम के २१