पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२५७

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- उछाह रंग- है वे हो सब लोग ये, है जु वही ससार, 4 तुम बिन छिन-छिन लगत जोवन दुवह भार । स्मति ही तें है जात है भानस में कल्लोल, नैनन ते यहि - वहि उठत अवश अबोले बोल। यह जीवन की दुपहरी भई झुटपुटी साँझ, तम की झाँई परि गयी तुम बिन या हिय माँझ । जिय सूनी, सूनी हृदय, तन - मन प्राण उदास, भली भई तुम सँग गयी जोवन की सुख आस । शरद जुन्हाई अव कहाँ कहाँ बसन्त जीवन में अब वचि रह्यो चिर निदाप को दाह । जीवन के मघ स्वप्न वे, हास, लास, सकल तिरोहित हे गये, प्राण, तिहारे, हुलस बलयां लेत है जा मुख को हरपाय, बाई मुख में अगिन हम दै आए निरुपाय । वा तन को फेवल भसम आज वचि रही दोप, यह परिवतन ठाठ हम लखत रहे अनिमेष । धू - यूवरि के वरि उठी उतै चिता पो आग, इत हिय घघको होलिया, रिनु फागुन, चिन फाग जिमि प्रसूतिकागार, जिमि लमन - मैंडप - रस - रंग, निमि शमशान पो लपट हलगी मनुग के सग। गंग-गंग जमे होईगे जनम - मरण बोउ याल, ये परिझं प्रग्यात री जन हिय मथि बेहार। 1 ! दम पिपपाया वनम A