पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२५८

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मानव ने नव जनम को लग्यो प्रात को हास, पुनि वान जन्मान्त को लरयो उदास अकास । उपा लखी मनभावनी, लरयो प्रात - आलोक, अव ये नैना लखि रहे श्याम सांझ को शोक । अब तो तुम बिन दृगन मे भरी रहेगी रात । एक किहानी है गयो अब प्रभात की बात । छ्यौ सँग, फोको परभी जीवन को राय राग, अब तो स्मृति ही मे रह्यो, प्रिय, तव अग - पराग । सस्मृति बनी अनूप, वसी रहो तुम हृदय में, कछु छाया, कछु धूम, सरसावहु मन - गगन बिच । केद्रीय कारागार, बरेली २५ अगस्त १९४३ झुकावन आज पिजरवद्ध नाहर आगो को वापुरो हमे हम उन्नत शिर, हम अजित, हम अजेय मृगराज । अद्यपि पिंजर - बद्ध हैं हम नाहर विकराल, अरे, तक हैं सिंह ही, हम न गरीन शृगार। हृदय उछाह अमाप है, ऑखिन गै है आग, अब भी है मन मे यही मृगया यो अनुगम वही दष्ट्र है, नग को, गी गरी अयोर । अजहूँ रिपु कपि या मादान बनघोर । म विषपायी नगर २० 1