पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२५९

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1 कापि उठत है पीजरा, कंपत लौह के द्वार । कंपत अगला बन्ध सन, मुनि नाहर हुकार हम अलीया, वौहर चले, सिरजें अपनी लोक, हमे न भावं अन्य को मारग आछौ, नोक 1 पेद्रीय कारागार, वरेरी ९ सितम्बर १९४३ 2 पैन ढरे घनश्याम बोल्यो नेह-पपोहा जीवन - तरुवर ठि पिऊ पिऊ? की ध्वनि गयो अन्तरिक्ष मे पेठि। अरुणा भई विभावरी, ढूँढत पिउ को वाच, कितै पिया की डगरिया? किते पिया को गाव निखिल सौर-मण्डल बन्यो सजन-मुमरनी गाल, घृणित निभुवन-रय सयौ नाम स्मरण सब काल । रयि, शशि, तारक वृन्द लो गंजि रही पिय नाग, टूढि थके अणु-अणु उन्हे, पे, न ढरे घनश्याम । धो गणेश घुटीर वानपुर ५ गई १९४२ २३ हम विषपायी जनमक