पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२६८

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परीक्षा के प्रश्न-पत्र चिन्तनी आतुरता से देखें अपने परचे आली, निर्दय परीक्षको को कृतियों को हैं विकराली। दुनिया भर की बात पूछते, यह सब श्रम का जाल, भन के मृदुल मिलन का उनको जरा नहीं है रयाल । आखर अमित अर्थ थोडा, यह प्रश्न-पत्र या खेल। जी मे आता आज जला हूँ इन सब को वे-तेल । टूटी वीणा जजर तूंवो, मग्न दार, टूटी इंटिया, तार उलझे। मुझे मिले ये स्वर अरझाने वाले वोणकार सुलझे ॥ टेढो - मेढी लचक लचोलो मिजरायें ढीली हाली, कुटिल भंगुलियो मे छायी है जटिल शिथिलता मतवाली। वया वीणा, क्या वीणकार, क्या गेय राग, क्या गोत बना । पयो बन गया कठोर उपल सा स्वर-विधान नवनीत मना? जरा व्हर, मत छेड़, अरे, ओ बीणकार रुक जा, रुक जा। मेरी टूटी वीणा पर, रे, तू यो मत झुक जा, रुक जा। चादन साधन की नि साधन-जनित कठिनता देख जरा, कैरो, अरे, गुंजा पामेगा तू नव स्वर - लहरी अपरा गमक, मूछना, मीड, गूंज, पनि बियासो का लोप यहाँ। मेरे टूटे दारु खण्ड पर हे विधना पा कोप महीं । हम विपपासी गनम के २४३ ?