पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पे पस उडाते हैं मन को, मैं पया हूँ? यया जान तन को ? उन्मत्त शराबी इस छन को, पा गया, यहो, जीयन - धन को, फिर-फिर स्मृति यो अति ही अपार । सुमनुहार। बैठी है पत्ती-पत्ती मे, पूजाति दीप पो बत्ती मे, अर्पित तण्डुल को रत्ती मे, वेदो - मसीह की 'मत्ती' मे, बैठी है मेरी मेरी निकुज को आता वह घृत ले पलियो मे, धरता है दौवे अलियो में, गणना है उसकी छलियो में, स्मृति-दीपक बुझता वार - वार" गलियो मे, कुछ देर जले यह दिया और, गू) माला का एक छोर, स्मृति की आबी, कर न शोर, चचलते, बहकाओ न मोर, मेरे मन का गाकर गलार 1 ? क्सिको आराधू 7 चलू कहा किसको मुरली को सुर्ने पहा किसया अधरामृत पियूँ कहाँ किरा अग्नि लोक में जि रहा जिससे छुटे वन्यन ? 2 विचार। २४६ हम निपपायी जनम