पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बागी, वरयाणी, वेदने, सुनो हृत्लण्ड जलाओ तुम जिरा प्रदेश को हो रानी, कर दो वह भस्म, न दो पानी, तब निकले शोले तीन चार 1 मूर्तिमान । इस हृदय-यज्ञ या धूम्रयान, लेकर आवेगा मेरी आहो का अशुदान स्मृति - रत्नो से भूपित महान् । उस शाको पर हो निसार । गत आनन्दो के अश्व-क्षीण। आगल दुख के अनुभव प्रवीण | अ यवत-भावना भरी बीन। यो हाथ जोड रहता 'नवीन' - प्रज्वलित यहि सुलगे अपार,- हृत्खण्ड करे फिर जल-बिहार, निकले सोते उनसे-अपार 1- वह चले, अहो, ऐसी बयार ।। I 1 सूखे - आँसू पयो क्लेने को तडप धीमी पड़ी, आज दिल सुनसान-सा क्यो हो गया' आँख के अव्यक्त भावो को लडी,- तोड दी किसने 7:- कहा धन खो गया ? हम विपमापी-जनम में