पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२७३

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इस विषमता की सरलता मूखकर,- किस सरोवर मे तिरोहित हो गयी। इस विपिन की वह कुहुकिनी कूककर,- किस निनादित वेणु - वन मे सो गयो ? सिसकने में ही मजा मिलता रहा, फसक की उस वेदना की चाह रो- हम विपनो का कमल खिलता रहा, दद को दिल से लगाया चाह से। 2 ? हाय पर वह दर्द मेरा क्या हुआ किस निठुर ने हाय । पट्टी वाच यो' लोल-लोचन-विन्दु, तुम अब हो कहाँ ? सूखता है यह विटप, - लो, देख लो।। नारी - मन्थन की पुरानी तुम पहेली गूढ, गहन राम्ध्रम - ग्रन्थि तुम, तुम ज्ञान-गति दिड्मूद तुम अमित, अति यवित-विचलित, चक्ति भाव-समूह, सुलझ फिर - फिर उलगती तुग प्रश्न-वृत्ति मुस्ह तुम पिपासाऽकुल जगत् री प्यास-आशा, नारि, एक चूंट अपूर्ण तुम मृगतृष्णिका सुपुमारि। २४ हम विषपाय जदम के N