पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२७४

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तुम सृजन-मन्थन-जनित विगलित चिमल नवनीत, चलित प्रजनन-चक्र को, तुम स्निग्य बूंद अतीत । तुम जगत् नीरस मास्थल के घरसते मेह, तुग तडित् विद्युच्छटा तुम सरसता के येह । तुम विराग - विकार मै अनुरागिनी मनुहार 1 रार तुम, अविचार तुम, तुम प्यार - अत्याचार 1 तुम समस्या अटपटी तुम चिर - रहस्य महान्, तुम दररा की चटपटी उस्कपिटता अनजान निपट आँख मिचीनियो की तुम झलक अम्लान, विगत युग-युग वो चिरतन तुम कसक मुसकान, हृदम - मन्यन कारिणी तुम मोहमय उन्माद, करपना को कोक्लिा तुग रचिर भाव प्रमाद । खूब चन आयी सलोनी तुम ठसक ठकुरास, मत्त गज गति में छिपा आलस्य का आभाग । विहस, डाला है जगत् के गीव में गुणबन्ध, नयन - कलिका मे भरी है अमित मादक गन्ध, ओ जगत् को स्वामिनी, मायाचिनी, तुम धन्य । तुम प्रकृति के मुगुट का पतिविम्ब रूप अनन्म । प्यास अरे थुझा दो, जरा धुझा दो, यह अन्तर की प्यास, सखे, विसी तरह तो हो जाने दो इरा तृष्णा का नास, ससे, चिटक रही है रोम-रोम में चरम पिपासा - भात्ति यहाँ, विकल प्राण ये मुरझ गये है, मुरक्षी जीवन - आस, सखे, हम धिपपायी जनमक ३२ २१९