पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सव मृदु मुसकान, प्राण शीतभीर सुमन सदृश तब मृदु मुसकान, प्राण, जिससे उठ रही अमित, मन्द-मन्द, मधुर घ्राण । फुटल-प्रियक सम लहरी तव कुसुमित साडी नव, रम्य हेम पुष्पक सम निखरा तब छवि वैभव, वकुल सुमन-गशि सदृश, सौयुगाय, प्रियतम, तव, फैल रहा तव सौरभ पारिजात के सगान, शीतभीरु सुगन सदृश, तव मृदु मुसकान, प्राण । लोल लचकमय कम्मित तय शरीर-लतिका यह मृदु मजुल वजुल सम सिहर रही है रह रह, यूथिका प्रसून झरें तब वचनो से अहरह, बने सुमन प आज तुग मेरे प्रिय सुजान, शोतभी युसुम सदृश तब मृदु मुराकान, प्राण । मैं शत भात सुमन-राशि वारे, प्रियतम, तुम पर, न्यौछावर है तुम पर मृदुल भाव है हियहर, नयना पर बलि होने आये सगन नभचर, नीलोत्पल दल संयुचे निरख ललित 5 कमान, निरपम है, चिर निरुपम तब मृदु मुसकान, प्राण । २५२ इम रिपपायाँ जनमक