पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२७८

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शरद-निशा आज यह शरद निशा बरसे, शवरी मे मधुरस सरसे । आज वह शरद - निशा बरसे। बहा रदन गायन यह छन-छन मगन गगन सरसे तुई पड रही मधुमम पीडा सकल चराचर से। आज यह शरद - निशा वरसे। दरद-परम की सरस नाट चू रही कलाधर रो, हैस हैस कसक दान देते हैं, निशिपति अम्बर से। आज यह शरद-निशा बररो। पिय के दरस विना कारागृह मे लोचन तरसे, परस कहाँ हम सो ह बहुत दूर उनके घर से आज यह शरद-निशा बरते। विलसित दिमण्डल हुलसा नभ शशि मृदुकर - से, मेरे कारा मे पादप उजागर-से आज यह शरद - निशा बरसे। भी हुए मन्मथ फलस्वरुप आये तुम शशि - रत्नाकर से, तुग न मयो हिय निकलेगा प्रतियोगी अन्तर से, आज यह शरद - निभा बरसे । हम विषपायी जनमक २५३