पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२७९

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आज हुलसे प्राण । ओ निठुर तुमने दिया यह नेह का वरदान ? हुलसे बाज आफुल प्राण नयन धर- गया उन मृदुल प्रियतम चरण पर,- अश्रु-भीने युग हो कृतकृत्य जीवन- थामकर हिय माह क्षण - भर, एक त्रुटि वह युग बनी, युग बन गया क्षण मान, पीतम आज हुलसे प्राण 1 तुम कितने सुघड साँचे में ढले हो, प्राण 1 भले हो, चिर निराश्रित विकल हिय को, यो राहारा दे चले हो। सिहर उट्ठा यह पड़ा था, जो निरा नियमाण । पीतम आज हुलरी 1 प्राण पविर, है सहाग विनट मेरी दूर मजिल, राह वधुर, निपट अपम मग म तव चरण नस ज्योति शिर मिर, मिर गयो यौवन निशा म ज्योतिमय मुमरान, पौतम माग हुलगे प्राण दम विषयी जनमक !