पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२८०

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पार करना है मुझो प्रिय, गह्न गह्वर शिखर सेन्द्रिय, क्यो अभी से पूछते हो, कि कब होऊँगा अतीन्द्रिय ? घोर विपयासक्तिमय है, अनासक्ति विधान । पीतम अज हुलसे प्राण 1 तुम सरद शुचि कमल लोचन, तुम सकल सबाट विमोचन, आज कर दो इस विधुर के, आज कुकुम बिलक रोचन, दो पराजित के विजय रा चिह्न है रसपान । पीतम आज हुलसे प्राण बने रहना आ गये तुम यो झिझकते,- विरत जीवन मे हिचकते, अव सदा यो, है दिवम वीते रािसनते, दीन को वुटिया करेगी कांन-सा सन्मान पौतम आज हुलसे प्राण । ? वायत मैं तुम शाषित मेरी, भक्त मे तुम भक्ति मेरो, नेहयोगी सजन-तुम, प्रेममय अनुरक्ति मेरी, गीत फर्ता में बने तुम मन प्रफुरिलत गान' पीतम आज हुलसे प्राण । हम विषपायी जनम के २१५