पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२८६

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साको। साको । मन-धन-गन घिर आये, उमडी श्योग मेघ-माला, अब कैसा विलम्ब तू भी भर-भर का गहरी गुरलाला। तन के रोम-रोम पुलकित हो, लोचन दोगो अरण-चकित हो, नस-नस नव झकार कर उठे हृदय विकम्पित हो हुलसित हो कब से तडप रहे है - खाली पडा हमारा यह प्याला' अव कैसा विलम्ब ? साको गर - भर ला अगूरी हाला और ? और ? मत पूछ, दिये जा, मुंह मांग वरदान लिये जा, तू बस इतना ही कह - साकी,- और पिये जा और पिये जा। हम अलमस्त देखने गाये हैं तेरी यह मघु-शाला, अव कैसा विलम्ब साकी, भर • गर ला गरी हाला। बडे विक्ट हम पीने वाले, तेरे गृह आगे मतवाले, इसमे क्या सोच लाज क्या? भर-भर ला प्याले पर प्यारे हममे बेटर प्यासी से पड़ गया आज तेरा पाला, अब मैसा विलम्ब ? साली, भर - भर, ला अगूरी हाला। हम विषपायी सनम क २१