पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हो जाने दे गर्क नशे मे, गत आने दे फर्क नदी में, शान - ध्यान - पूजा - पोथो के-- फट जाने दे वर्क नदी में। ऐसी पिला कि विश्व हो उठे एक बार तो मतबाला । साको, अब कैसा विलय भर - भर ला अगूरी हाला। तू फैला दे मादक परिमल, जग में उठे मदिर-रस छल उल बतल-वितल-चल अचल-जगत में- मदिरा झलक उठे झल-हाल-हाल, कल कल छल-उल करती बोतल रो उमडे मदिरा बाला, अब केसा विलम्ब शाको, भर भर ला अगूरी हाला X प्यास कूजे-दो कूजे मे बुझने वाली मेरी चार - बार 'ला-ला । कहने का समय नहीं, अभ्यास नहीं। अरे बहा दे अविरल धारा, बूंद-बूंद का कोन सहारा मन भर जाय, हिया उतरावे, डूये जग सारा - का - सारा। ऐसी गहरी, ऐसी लहाती ढलया सावी, अब सा विलम्ब ? दखा दे अगूरी हाला द गुरलासा २६२ हम विपपायी अनम