पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२८८

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सो जाने दो सो जाने दो, अव न चुभाओं इस जागृति के शूल, आख मीचने दो, होने दो चेतनता उन्मूल । पह सज्ञा, वह ज्ञान भाव है भोले हिय को भूल, मुझे उहा दो, आज अचेतनता का श्याम दुकूल। आज तिल रहे मेरे आंगन धनी नीद के फूल, सो जाने दो, मेरी इतनी विनती करो कबूल । यह धूमावृत दिमण्डल सोया है लम्बी तान, सखो, साझ की वेला तत्पर भी सोये अज्ञान । निश्चेष्टता कराने आयो आज मदिर - रस -पान, नीद नीद, सब ओर नीद का छाया स्वप्न-वितान । अरी साज ले लेने दो अजलि-भर निद्रा - दान, सो जाने दो अव न मुनामओ जागृति का गुणगान । भीने - भीगे नूपुर पहिने श्याम चदरिया ओढ- घोमे - धीमे निदिया आयो चेतनता गुण तोह, सतत जागरण को दुखदाई कसना हुई कुछ लोप, अब तो कृपया करो न मुझ पे भूविलास का कोप । इस अधियाले में मत चमकाओ बिजली की रेस, मेरे नीद-गगन में मत छिटकाओ मह अविवेकः । झपरी लगते ही जग जाती है अपने नो भाति, यह किंचित् विधाति बन गयी हाय हृदय की नाति । पलर गे, जग ने समक्षा सोया हूँ में अनजान । पर मैं जानू है कि नीद या पैसा हे परदाग हम विषपायी जनम . २६३