पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२८९

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? फिसका दोप? तुम्हारा है या मेरा घोलो प्राण । अरी, नीद म भी तक तक क्यो मारो हो स्मृति-बाण रेल पथ नारस से रागपुर २४ गस्त ११३१ आवृत जीण शीण आवरण लपेटे बड़े जतन से, हाय, लिये जा रहा हूँ मैं अपना भेद भरम निरुपाय, तुम न टटोलो इसमे क्या है २ टीस उठेगी, बाल, होगी कसम, जरा होगा इस हिप का हाल विहाल । ठपा - मुंदा रहने दो उसको, अब न भारो खिलवाड, भेद खुलेगा, गै सजनी, युछ तो रहने दो आडे । रीती हसी, अनमनी बारी, क्षीण मन्द गुसकान, इनके झीने पर लिपटा एक दरद अनजान । ख्व छिपाने की कोशिश म रहता हूँ दिन - रात, फिर भी झला दिखाई दे जाती सहसा अज्ञात, कभी ऐसी में, बभी सूशी गे, कभी वात के बीच- आह निगोटी व्यथा-कथा को ले आती है खीच । तो अभी समझते कोई युछ, कोई युछ, बात, सजनी मेरे माधम यो है रथा अभी अनात, छेउ-छाद पर तुम न उगागर परो उसे नहुँ और, विश्व - व्यापिनी हो जायेगी मेरो माल मरोर, मोही लोग पहा पत्र फिर तोहा+तुम+ यह जग मिस्परहोगे पागर - तीन! पागल बा 'नवीन', २१५ दम विपाया नमः