पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२९०

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विश्व-व्यापी मेरे पत्ते-पत्ते मे बैठी है कौन? पर्वत को रोमालियां ये हैं क्यो मौन ? किया इशारा नाच उठी रोमावलियां, जरा निहारा कांप उठी मन मालिनियाँ। नदियां बहने लगी हृदय पत्थर पिघला, बडी बुरी है हाय ! प्यार की ये गलियाँ । मैं पूV - मेरे पत्ते में बैठी कौन ? पर्वत की रीमावलियाँ ये हैं पयो मौन ? पया देखा ? राव कुछ देखा, स्वीकार किया, भूधर का अपने नेघो पर भार लिया, शिला-पड देखे नगो का रूप लखा,- वृक्षावृत्त-शिसरो पर मन कोवार दिया। पर इन सबमे टिपकर वह बैठी है कौन? पवत की रोमावलिया ये है क्यो मौन ? . प्रकृति निरीक्षण के लायक, यह गन न रहा, उस यूनिम मूरत से कुछ जाता से कहा। जहाँ उठायी आँख उसे पहले देखा, विरह-यवना का विचिन व्याघात सहा 1 वह हँसती, निष्ठुर-मी, लज्जित सी है कौन? जिसके कारण प्रकृति नटी वन वैठी मौन? हम विषपाथी जनम क २४ २६४