पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२९

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- चेतना लसा मे लय-भव के वयो सुमन फूलते रहते हैं क्यो जन्म मरण के झूले में मे प्राण झूलते रहते हैं। ये पूण-पुरातन प्रश्न चिह्न, ये चिर जाग्रत ये चिर नवीन,- मेरे मानस-पट पर उमरे फिर से ये पूण रहस्य-लीन, इन प्रश्नों की उत्सुकता का मे आज बनाई पुजरप, दे दो तो उत्तर धीरे से तुम ओ मेरी सान्ध्ये अनूप । इच्छा तो है में खोल सकूँ यह भीम भयानक मृत्यु द्वार, इच्छा यह है मै झाक स. इस धनावरण के आर पार, उड चले आज मम राज हस, सीमान्त गगन का वक्ष चीर, अम्बर चापे, कुछ भेद खुले युछ छलक उठे नभ गग नौर, अनुमान शान की नहीं, भाज प्रत्यक्षा ज्ञान को प्यास मुझे, दे विस क्षण म जीवन में वह नीर गान कर स्क्य बुझे 7 श्रो गणा-युटीर रानपुर की क्षत मागीय क्ल पूणिमा, १९९६ २६ दिमा१९३९