पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/२९६

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टीस उठेगी विक्षत क्षत भै- यदि देखोगे घाव रोम-रोम से आह निकलने- लग जायेगी जरा जग। वाण नही-पेने प्राणो की, मानी चुभी अन्तस्तल में , गम भेद को गूट बात क्यो, पूछ रहे हो पल पल में? मना-व्यवहार रंधर में यही नहीं कि हाय कंपते हैं, हिय भी कॅपता आज, पूरन कैसे होगा पतिया-लेसन का यह काज ? बडे जतन रो, हिम्मत करके, लिपने बैठा पत्र, पर ना जानूं से यह हो गया भाद्र भरणा हिंय घटके, युग हन्त , मिट्टी का और न टार, थोडे में ममनना बहुत तुम, है प्रा हो डोर। मेरे हिस की मजूपा में नहीं जन अनमोर, और नहीं है यहाँ नाना और फिर भी हैं कर रहा मुक्ति पानीमान, इसमे का है ' तन मनन । टी मटाची कीर-नने की ... इम सिर