पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३०२

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इस नीरस पादप को डाली पर मै झूला वाँधूगा । 'उसमे अपने चित्त चोर को दुलराकर आराधूंगा।' "वालदशा मति मुग्धे चौरित दुग्ध प्रजागना भवनात्, तदुपालम्भ वचोभय विभ्रम नयने रतिर्मेऽस्त्वकस्मात् ।" महद्भयावह कुपरिस्थति मे रसना रटे यही रति-पाठ । माखन के लोभी, बन जाये यही मन्न जीवन का पाठ ।। दीप माला वहिना। आग सँजा दो धीरे-धीरे दीप-अवलिया, घनी सांडा को बेला आलोक्ति हो जीवन-गलिया । सुम्पे दोप, तेल के प्यारो, भर दो पलियाँ पलियाँ । अचल ओट करा, खिल जायें मृदु सन्ध्या की कलियाँ, मन्द वायु में ढोल बठे ये नव-प्रकाश की डलियां, बहिना, आज सजा दो धोरे-धीरे दीप-अवलिया ! बडी जुगत से इन्हें जलाना, भोली, नन्ही रनियाँ, होले-हौले चलना, बजन उठे मोठी पैजनिया, दीप - मालिका गूंथो रानी, लाख-लाख की मणिया, पर बाती पे टपका मत देना, लोचन को कणियां । खोल, बतासे और खिलौने ले ला कनिया कनिया | वहिना । आज सँजा दी, धीरे-धीरे दोप-अवलिया। हम दिएपाया बनमक