पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३०३

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यौवन-मदिरा भर-भर प्याले यौवन मदिरा के देना अब वद करो, इस मादक गुण से हे स्वामी, मुझे जरा निवन्य करो। मन्द करो उन्मत्त भाव के प्रति, मेरा उल्लास नमा 1 मेरी सासे, कर लो अपने, श्री चरणो मे तुम विजया। आज वासना की चिनगारी, उडती फिरती मारी गारो, कई तूल तो अलरा चुके हैं। अब आयी जगती की बारी, रवामी, नैतिकता की डोरी जल जायेगी, बन्द करो, भर-भर प्याले यौवन-मदिरा जी देना अब बन्द करो। 11 चचल हृदय स्थल को बन जाने दो स्थिरता अनुगामी, वरना धडक धडक कर फट जायेगा यह मेरे स्वामी । नामी शुटिला मे, किन्तु तुम्हारा ही कहलाता हूँ। यह सच है कि कुलच्छन से में राउर हिय दहलाता हूँ हे निपि, दोप था घर हूँ पाप पुज का मैं आकर है। पर फिर भी प्रभु का अनुचर हूँ, तुम सागर की मै गागर है, इसी लिए प्रिय, घटालाश ये ये सारे फरफन्द हरा, भर-भर प्याले यौवन मदिरा के एना मर बन्द करो। खडी दर पे लोक-लाज मुयस वहती है मैंभल जरा।. इधर मामने योग्न मादरता बहती है मंचर जरा। हम दिपाया अनम