पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३०९

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थकित प्रतीक्षा हो चलो दिन की प्रतीक्षा थकित, सच्या के क्षणो मे। रह गये लोचन फटे - से, चकित, सन्ध्या के क्षणो में। का शोणित सुसचित- परस आभास बचित, उफन फैला अश्रु मिस हो मथित राध्या के क्षणो मे। बैठ आशा के हिंडोले- स्मरण वेणी वन्य खोले- भूल कर दिन - भर लगन है व्यथित, सन्ध्या के क्षणो में। किरण कुकुम रम रजित, सुरखुनी मध्य मेघ छिन मे हुए कत्मप - जटित, राध्या के क्षणो में। इल चला रवि अशुमाली, एर चली आकाश लाली, द्रुत विकृति या हो रही है घटित, सध्या के क्षणों में। नोट विके घन भवन अजित, सत गजि-से- हम विपाया जनम