पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३१२

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कर लेने दो बोशा हलका, बने दो जल अन्तस्तल का, मै डूडा उतराता हूँ, सो गया शान मर जल थल का, दुक रो लेने दो जरा देर, क्या छड रहे हो वेरन्धर । मैं कई बार तो गिरा-पडा, गिर-गिरकर फिर हो गया सडा, फिर लगा हिनकियो का अटका, टूटा धीरज वा यन्ध कटा, अन तो प्रवाह ने लिया धेर, टुक से लेने दो जरा देर ? मानविमण्डल शुभ गिरा, पाले मेघो है आज घिरा । अधिशारी छायो हो-राल मे, खरटका परदा आन गिरा, सन राग रग हो गये ढेर, दुक रो लेने दो जरा देर मेरी गागर में सागर है, इन आषो से रत्नाकर है, लहराती हैं ये 4 लहरें, जिनका सब-कही निरादर है, इस लिए मुझे तुम जरा देर, टुक गे लेने दो सुनो टेर । निर्झर यह आयुरलोचन का, है सूचित मेघ मम रोचन का, बहने दो मत अवरुद्ध परो, सोशा वेदना-विमोचन का, गत पोडो आंसू, सुनो टेर, टुफ रो लेने दो जरा देर आयी है यानी कर सिंगार पहन मुक्सा का तरल हार, फुद्धिा बरसाती इधर-उबर, कर रही आद्रता का प्रसार नयनो के नूतन कण निरोर,-टुक ये लेने दो जय देर हम यिपपायी जनम के २७ ज