पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३१४

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अट-पट पाव पड़ते हैं, बात फैल गयी, आकर संभालो लोक-लाज के सुजाम नेक, भूल के नशे मे कही घूम न जाऊँ उधर, छिटकी है जहाँ चन्द्रिका-सी मुसकाग नेक गिरते, पडते, झूमते, झुयाते ऐ नवीन, चलो उधरी को जहां लय है प्रणय का । तिदय नियम जहाँ भस्मीभूत भाव लिये, भम्म करते हैं अनुनय का, विनय का । इरा वेहोशी मे इतना तो होश रखना कि, पराजय ही मे मशा आता है विजय का । भृन मत जाना है 'नवीन' पुरातन राज्य -- 'सृष्टि के विकास में छुपा है तत्त्व लय का' श्रान्त अव तो बहुत थक गये, प्राण, इधर-उबर, नित न बुद्ध सोजते फिरते बहुत हुप हेगन, अब तो बहुत धक गये, प्राण, पाँच थके, हिय थका, जिय था, रोत्रन नसे, यो, मग-अग आशा थकी, प्रतीक्षा हागे, मी क्यना-अथन दहाण, हम तो बहुत पर गये, प्राण, इम विषपायी नमक २७