पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३१५

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अन्वेपणमय अg याम की परिक्रमा है धात नितान्त, दरसन-प्यास बढी अधिकाधिक ज्योज्यो वढतो नयी थकान, हग तो बहुत यके अव, प्राण, नौरम, अति निष्फल यह जीवन, हृदय-रिक्त, मन निपट अशात, रेवल व्यर्थ प्रयोगो में ही बीते जीवन क्षण मुनसान, अप तो बहुत थक गये, प्राण, गत जीवन पर डाल रहे है, अब हम हमरत भरी निगाह, क्या मे षया हो गाते गर हम, यूँ से यूँ चलते अनजान, अत्र तो बहुत थक मये, प्राण, गत कृत अभ्यासो के बन्धन हुए बहुत ही है मजबूत पोतम, कठिन दीख पड़ता है इस गति से पामा निर्वाण, अब तो यहत थक गये, प्राण, खेल-खेल मे तुम मन-मोजी, पर हमको दो झटमा एक, तो यस, उस इकटल्ले से ही हो जाये जीवन मायाण, अब तो बहुत थक गये, प्राण, डिस्ट्रिक्ट जेल, अलीगढ़ १७ जनवरी १९३४ २५० ६ग विषपाय। जनम के