पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३१६

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यह सुप्त अभुत राग जग गया, हो, जग गया नह सुप्त अथुत राग, भर गया, हा, भर गया हिय में अमल अनुराग, खुल गयो, हा, सुल गयी खिडकी नयन को आज, धुल गयो, हां, घुल गयी सचित्त हृदय को लाज, नेह - रंग भर भर सिलाडी मैन गेले फाग, जग गया, हो जग गया वह सुप्त अश्रुत राग । दे रही, धड़कन हृदप की, द्रुत ध्रुपद की ताल, हिचकियो से उठ रही है स्वर तग विशाल, आह की गम्भीरता में है गदग उमग, निठुर हाहाकर मे है चग कारण रग, रंग - भग अनग - रति बा दे गया वह दाग, जग गया, हा जग गया वह सुप्त अश्रुत राग। प्यार - पारावार में अभिसारिका - सो लीन, बाबरी मनुहार - नौका डुल रही प्राचीन, शीण, बन्धन - हीन जजर मलित दारु-समूह, पार बोसे जाय । है यह प्रश्न गून दुरुह । स्वर-तरगे बढ रही, है बढ़ रहा अनुराग, जग गया, हां, जग गया है सुप्त अश्रुत राग । युगल लोगन में मदिर रंग छलक उठता देख, - निर, तुमने फेर लो वपो यास एवा - एक सिहर देखो मानखियो से अरण मेरे नैन, सकुच शरमा कर कहो, कुछ 'हा' 'नहीं' के बन, भर रहा है सजनि फिर से यहा शुष्क सघाग, जग उठा, हा, जग उठा है सुप्त अक्षुत राग । हम रिपपाया मनमक 2