पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३१७

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मृदुल कोमल याहु-वरलरिमा डुला कर, वाल,- कठिन सोताक्षरों को आज करो निहाल, आज लिखवा यार तुम्हारे पूजको मे नाम, हृदय की तपन हुई है, सजनि, पूरन काम, राग के, अनुराग के अब खुल गये हैं भाग, जग गया, हाँ, जग गया है सुप्त अश्रुत सग। भिखारी निय, मेरा हिय सतत भिखारी, भर दो इसकी नयन झोलियां, हे मेरे मन-गगन विहारी, प्रिय, मैरा हिय रातत भिखारी, नि श्वासोके कन्धो पर लटकाये निज लाचन की झोली, - एक एक धडकन के मिस यह अलख जगाता बारी बारी, प्रिय, मेरा हिय सतत भिलारी, धडक-धडक निधटक यह भटका दर दर दरस-दान पाने को, पर, न अभी तक भर पायी हैं इसको ये शालिया विचारी, प्रिय, मेरा हिय सतत भिक्षारी, अपनी अलख झलक झाकी से, तुम शिल-मिल करदो अन्तरसर, रीते भिक्षा पान हृदय के भर-भर दो हे रससचारी, प्रिय मेरा हिय सतत भिखारी, पीतम प्याम नयन धन, विछुटन के दिन से हिय मचल गया है। तुम्ही वहो, क्या जतन र ? यह हृदय सदा का है अविचारी, प्रिय, मेरा यि सतत भिखारी। हिस्टिनर जैल, पैशायाद २० अगरत १९३३ २९९ दम रिपपाय जनम