पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३२१

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अति हो गयो कांपतो निधि के तारे भी यो बोल उठे, सभी पूछते हैं क्यो रे, कव होगा शमित दाप मेरा ? शाप वहूँ इसको? या अपने जीवन का वरदान कहूँ? मैं इसको अपमान कहूँ? या यौवन का सम्मान कहूँ इस विछोह को मोह वहूँ या निज पोतम को टोह कहूँ' प्राण हरण कह दूं या इसको में जीवन का नाण कहूँ सभी पूछते है क्यो जी कवि, अन्ल-राम कव गाऔगे ? किन्तु पूछता हूँ गं हे प्रिय, मन आगन कब छाओगे ? आ जाओ तो आज सुना हूँ अग्नि गीत तुमको, जीवन, जरा यता दो, कौन थडी तुम यो से हाकर जाओगे? घी गणेग कुटोर, वानपुर गई १९३५ कह लेने दो ओ मेरे प्राणो की पुतरी, आज जरा कुछ कह लेने दो, सिफ आज भर ही कहने दा यह प्रवाह बुछ तो बहने दो, मयम? मेरी प्राण, जरा तो- आज अरायम म यहने दो, गौन - भार से दबे हृदय को कुछ मुखरित सुप सह लेने दो, आज जरा कुछ वह ऐने दो, rम विषपापी जनमक २९६