पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३२२

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तुम हो मम अस्तित्वग्वामिनी, मम मन-धन को साटिक दामिनी, तुम मेरे वर्मठ जीवन की- हो विश्रान्ति प्रपूण यागिनी, मेर इन उत्सुक हायो को अपने युग पद गह लेने दो, आज जरा कुछ कह लेने दो, मेरे प्राणी को आकुलता, मेरे भावो की सकुलता- वैसे व्यक्त करूं? किमि प्रकटे- उच्छ्वासो की गहन विगुलता जरा देर तो अपने द्वारे मुझ जोगी रह लेने दो। 2 L आज जरा कुछ कह लेने दो मुझसे पूछो हो मैं क्या हूँ एक मौजिजा - सा देना हूँ मै तब नयनो के दपण में- तव सनेह - प्रतिविम्य बना हूँ, मै आसू थन, मोनभद्र - सा, यह जाऊं तो बह लेने यो आज शरा कुछ याह लेने दो, श्री गणेश कुटीर कानपुर १४ भई १९६५ हम पिपाया जना के २१. ३८