पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/३२३

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सजन मेरे सो रहे हैं सजन मेरे सो रहे है, आज द्वन्द्वातीत-से वे योग-निद्रित हो रहे है, सजन मेरे सो रहे हैं। मुग्व शयन के भार से हे युग दृग-च्छद अति थकित वे , व्यान-वीणा-नाद में है रम गये लोनन चकित वे, नयनतारा, पलमा-काराबद्ध हैं, अतिगति चलित वे, श्वास दोलाललन में प्रिय भार तन्द्रिल ढो रहे है। सजन मेरे सो रहे हैं। नीद मे घुल-मिल गयी हैं जागरण को सब व्यथाएँ, स्वप्न के सोत की है अटपटी-सी सर कथाएँ , शून्य-निदा लोक शोभा सजन जागे तो बतायें, समय तो चित्त की चिर चेतना ये यो रहे हैं, सजन मेरे सो रहे हैं। सुप्ति-सरिता-बार में अस्तित्म-तरणी पट गयी है , पूर्ण-गशा गन्यता के भंवर लो वह बढ गयी है , शान्ति ये पतवार की शोभा अनोपी नित नयी है , गाव में विधान्ति-जरा से गुप-मल प्रिय धो रहे हैं। 1 गजन मेरे मो रहे हैं २९६ दम विपपायी पनम 1